शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

वो इक सिगरेट ओंठो तले दबा लेते हैं ------- ( यशवंत मेहता)

रोज सड़क पर चलते हुए न जाने कितने लोग सिगरेट के कश लगाते मिलते हैं. इतना प्रचार होता हैं, इतने लोग उन्हें सिगरेट के नुकसान बताते हैं. वो खुद भी जानते हैं कि उनके हाथ में धीमे जहर की डंडी सुलग रही हैं जो उनके लिए खतरनाक हैं. फिर भी क्यूँ सुलगाते हैं वो सिगरेट को???? क्या कारण हैं??? मैंने इस कविता के जरिये उनके मनोभाव बताने  की कोशिश करी हैं   
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किसी ग़म को याद करते हुए वो
आँखों की नमी में अश्कों को छुपा लेते हैं
दोस्तों के बीच राजे-दिल जाहिर होने से पहले
वो इक सिगरेट ओंठो तले दबा लेते हैं

दुनियां के उलझे किस्सों को वो
दुनियादारी के तरीको से सुलझा लेते हैं
मन की उलझनों को सुलझाने से पहले
वो इक सिगरेट ओंठो तले दबा लेते हैं

 समाज में फैली गन्दगी देख वो 
विरोध को अपने खून में उबाल देते हैं
किसी मुद्दे पर चुप्पी साधने से पहले
वो इक सिगरेट ओंठो तले दबा लेते हैं

जिंदगी की कशमकश में उपजे तनाव को वो
दिल के इक कोने में दबा लेते हैं
गुस्से का ज्वालामुखी फूटने से पहले
वो इक सिगरेट ओंठो तले दबा लेते हैं 

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इक चेतावनी : सिगरेट हानिकारक हैं. धीमा जहर हैं. इससे बच के रहिये. जब तक आप अपनी इच्छा शक्ति को मजबूत नहीं करेंगे आप इससे नहीं बच पाएंगे. अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत करिए और इस जहर को अपने जीवन से निकाल दीजिये. आपके जीवन पर आपके प्रियजनों का भी अधिकार हैं.